Pitru Paksha 2023: बिहार के गया में पिंडदान 29 सितंबर से 14 अक्टूबर तक चलेगा, जाने इसका महत्व

Pitru Paksha 2023: पितृपक्ष, जिसे श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है, यह हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है जिसमें पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध किया जाता है। पितृपक्ष के दौरान, हम पूर्वजों को याद करके उनका श्राद्ध करते हैं और उनको तर्पण देते हैं। इससे हमारे पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।
पितृपक्ष और पिंडदान का आयोजन
गया वैदिक मंत्रालय पाठशाला के पंडित राजा आचार्य के अनुसार, पितृपक्ष के दौरान सगे-संबंधी को अपने घर में नहीं रखने की एक विशेष मान्यता है। यहां की परंपरा के अनुसार, गया श्राद्ध के लिए आने वाले लोग पितृ श्राद्ध या पिंडदान करने आते हैं।
पुराणों में इसके लिए कई नियम और मान्यताएं बताई गई हैं। उन्हें इन नियमों का पालन करना अनिवार्य होता है, जैसे कि कैसे आचरण करना, किस प्रकार रहना, जमीन पर सोना, पराया अन्न नहीं खाना, पितृ स्मरण या देवता स्मरण में रहना। यह सभी नियम पिंडदान और पितृपक्ष में अपनाने जाते हैं।
जो श्रद्धालु गया तीर्थ यात्रा करने आ रहे हैं, उन्हें इन नियमों का पूरी तरह से पालन करना आवश्यक है। इस दौरान, वे अपने निजी सगे-संबंधियों के घर में नहीं रह सकते हैं, क्योंकि पितृपक्ष के मायने हैं कि इस समय वे एकांतवास में रहें या किसी अन्य स्थल पर रहकर श्राद्ध कार्य पूरा करें।
पिंडदान करने से मिलता है मोक्ष
धर्म ग्रंथों के अनुसार बिहार के गया जी को मोक्ष की नगरी कहा गया है। यहां पूर्वजों का पिंडदान करने से उन्हें जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। ऐसा कहा जाता है कि पितरों की आत्मा इस मोह माया की दुनिया में भटकती रहती है। वहीं, कई योनियों में उनकी आत्मा जन्म लेती है। इसलिए गया में पिंडदान करने मात्र से इससे मुक्ति मिलती है और स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
कब से है पितृ पक्ष
पितृपक्ष 2023 इस साल 29 सितंबर से शुरू हो रहा है और आश्विन कृष्ण पक्ष की अमावस्या की तिथि 14 अक्टूबर को समाप्त होगा।
तर्पण विधि
पितृपक्ष के दौरान प्रतिदिन पितरों के लिए तर्पण करना चाहिए। इसके लिए आपको कुश, अक्षत्, जौ और काला तिल का उपयोग करना चाहिए। तर्पण करने के बाद पितरों से प्रार्थना करें और गलतियों के लिए क्षमा मांगें।
पितृपक्ष 2022 प्रार्थना मंत्र
- पितृभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः।
- पितामहेभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः।
- प्रपितामहेभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः।
- सर्व पितृभ्यो श्रद्ध्या नमो नमः।।
- ॐ नमो व पितरो रसाय नमो वः।
- पितरः शोषाय नमो वः।
- पितरो जीवाय नमो वः।
- पितरः स्वधायै नमो वः।
- पितरः पितरो नमो वो।
- गृहान्नः पितरो दत्तसत्तो वः।।
श्राद्ध की तिथियां
- 29 सितंबर – पूर्णिमा श्राद्ध
- 30 सितंबर – प्रतिपदा श्राद्ध, द्वितीया श्राद्ध
- 01 अक्टूबर – तृतीया श्राद्ध
- 02 अक्टूबर – चतुर्थी श्राद्ध
- 03 अक्टूबर – पंचमी श्राद्ध
- 04 अक्टूबर – षष्ठी श्राद्ध
- 05 अक्टूबर – सप्तमी श्राद्ध
- 06 अक्टूबर – अष्टमी श्राद्ध
- 07 अक्टूबर – नवमी श्राद्ध
- 08 अक्टूबर – दशमी श्राद्ध
- 09 अक्टूबर – एकादशी श्राद्ध
- 11 अक्टूबर – द्वादशी श्राद्ध
- 12 अक्टूबर – त्रयोदशी श्राद्ध
- 13 अक्टूबर – चतुर्दशी श्राद्ध
- 14 अक्टूबर – सर्व पितृ अमावस्या
इन दिनों के दौरान, पितृपक्ष का महत्वपूर्ण समय होता है जब पूर्वजों के आत्माओं की शांति के लिए तर्पण और श्राद्ध किया जाता है।
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