बिहार में स्थित है विश्व का सबसे प्राचीन व रहस्यमय मंदिर,बली के बाद भी जिंदा रहता है बकरा; रोजाना लाखों की लगती है भीड़

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Maa Mundeswari Temple– दुनिया का सबसे प्राचीन मंदिर,जी हां सही सुना आपने हमारे बिहार के कैमूर जिले में स्थित है सबसे प्राचीन मंदिर, इस मंदिर से लाखों-करोड़ों लोगों की आस्था जुड़ी हुई है|

बिहार के चर्चित जिला कैमूर सुंदर झरनों के साथ-साथ प्राचीन मंदिरों के लिए भी पूरे भारत में प्रसिद्ध है। पंवरा पहाड़ी पर स्थित मां मुंडेश्वरी का मंदिर अपने आप में इतिहास को समेटे हुए हैं। जमीनी स्तर से 600 फीट की ऊंचाई पर माता रानी विराजमान है।

मंदिर से जुड़ा इतिहास

राजधानी पटना से मां मुंडेश्वरी मंदिर की दूरी लगभग 200 किलोमीटर है। कैमूर के वादियों से मां मुंडेश्वरी मंदिर का प्रांगण घिरा है। इतिहास की माने तो जिस इलाके में मां मुंडेश्वरी का मंदिर स्थित है उसे इलाके के लोगों को चंड और मुंड नाम के असुर लोगों को परेशान किया करते थे।

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लोगों की सहायता करने के लिए माता रानी धरती पर स्वयं उतरकर चंड नाम के असुर का वध कर दिया था। माता रानी के दर से मुंड नाम का असुर ऊपर पहाड़ियों में छप गया था लेकिन उसे भी देवी मां ने खोज कर वध कर दिया था, उसके बाद उसे स्थान को मां मुंडेश्वरी के नाम से पूरे भारत वर्ष में प्रचलित हो गया।

अनोखी परंपरा

मां मुंडेश्वरी मंदिर का एक अनोखा परंपरा है जिससे यह मंदिर श्रद्धालुओं के लिए और भी खास बन जाती है। यहां लोग मन्नत मांगते हैं और बाली के लिए बकरा लेकर आते हैं लेकिन उसे बकरे की प्राण नहीं ली जाती है।

दरअसल बकरे को मां मुंडेश्वरी की प्रतिमा के सामने लाया जाता है इस पर पुजारी थोड़े से चावल को माता रानी के प्रतिमा से स्पर्श कर कर बकरे की तरफ फेंक देते हैं, उसके बाद पूरी तरीके से बकरा मूर्छित हो जाता है। कुछ समय के बाद पुजारी दोबारा से चावल बकरे के तरफ सकते हैं उसके बाद अचानक से बकरा सबके सामने उठकर खड़ा हो जाता है।

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सूर्य के साथ बदलता है शिवलिंग का रंग

इस मंदिर के मध्य भाग में पंचमुखी शिवलिंग स्थापित है। आपको बता दे की भगवान सूर्य की स्थिति के साथ-साथ शिवलिंग का भी रंग प्रत्येक घंटा बदलता है। जानकर आप भी चौंक जाएंगे यहां सुबह दोपहर शाम शिवलिंग के अलग-अलग रंग श्रद्धालुओं को दिखते हैं।

इतिहास के अनुसार मंदिर की संरचना की बात कर तो प्राप्त शिलालेखों के अंतर्गत यह मंदिर 389 ई में बना हुआ है। मंदिर का डिजाइन काफी आलीशान है और प्रतिमा उत्तर गुप्तकालीन लगती है। मंदिर की बनावट देखने के लिए बड़े-बड़े इंजीनियर रोजाना पहुंचते हैं।

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