Kargil Vijay Diwas 2023: गर्भवती पत्नी को माँ के पास छोड़कर कारगिल युद्ध में लड़े, तिरंगे में लिपटा आया शव, उसी दिन बेटे का हुआ जन्म

फिलहाल पूरा देश करगिल विजय दिवस मना रहा है। इस दिन करगिल युद्ध में शहीद भारतीय सैनिकों के बलिदान और शौर्य को याद किया जाता है। बिहार के कई सपूतों ने भी कारगिल युद्ध में अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था।
उन्हीं में से एक जाबांज हैं बिहार के जहानाबाद जिले के टुनटुन शर्मा। बलिदानी टुनटुन शर्मा प्रसव वेदना से तड़पती पत्नी को छोड़कर मातृभूमि की रक्षा के लिए कूच कर गए थे। आईये जानते है उनकी गौरवगाथा।
कारगिल से आया बुलावा
कारगिल में देश के दुश्मनों से लोहा लेते हुए 22 जुलाई 2002 को जहानाबाद के सदर प्रखंड के चैनपुरा के लाल टुनटुन शर्मा बलिदानी हो गए थे। इससे कुछ दिन पहले ही वे अपनी गर्भवती पत्नी के इलाज के लिए गांव पहुंचे थे।
जैसे ही उनकी पत्नी को अस्पताल में भर्ती कराया गया था कि कारगिल में एक बार फिर दुश्मनों की नापाक हरकतें होने लगी थीं। युद्ध की रणभेरी बज चुकी थी और वीर टुनटुन शर्मा को बुलावा आ गया।
शत्रुओं से लोहा लेते वीरगति को प्राप्त हुए
अब उन्हें देश और परिवार दोनों में से किसी एक को चुनना था। जहाँ एक ओर प्रसव वेदना से तड़पती उनकी धर्मपत्नी थी तो दूसरी ओर मां भारती की ओर शत्रुओं के बढ़ते कदम को रोकने के लिए उनके कर्तव्य की पुकार।
वीर टुनटुन शर्मा ने अपनी पत्नी को मां के हवाले छोड़ कारगिल के लिए कूच कर गए। चार दिन बाद उनकी शहादत की खबर उनके गांव पहुंची। कारगिल में शत्रुओं से लोहा लेते हुए वो वीरगति को प्राप्त कर गए।
गेंदा देवी को अपने दोनों औलाद पर नाज
उसी दिन बलिदानी की मां गेंदा देवी ने यह ठाना कि अपने बेटे का बदला लेने के लिए वह अपने दूसरे बेटे को भी फौज में भेजेगी।
दूसरे बेटे मुनचुन शर्मा ने भी अपने माता केस इस सपने को पूरा किया। मुनचुन अभी सीआरपीएफ में भर्ती होकर देश की सरहद की सुरक्षा में जुटे हैं। गेंदा देवी को अपने दोनों औलाद पर नाज है।
उम्र के अंतिम पड़ाव में उनकी आंखों की रोशनी भले ही धुंधली हो गई हों, लेकिन आज भी उन्हें इस बात का गर्व है कि उनके एक लाल ने देश के दुश्मनों के दांत खट्टे करते हुए अपना बलिदान दे दिया और दूसरा लाल देश की सुरक्षा कर रहा है।
पत्नी रिंकू को नहीं दी गई थी शाहदत की सूचना
सूचना प्राप्त होने के तीसरे दिन बलिदानी टुनटुन शर्मा का पार्थिव शरीर तिरंगे में लिपटा चैनपुरा पहुंचा था। जिस दिन उनका पार्थिव शरीर गांव पहुंचा उसी दिन पत्नी रिंकू देवी ने सदर अस्पताल में बेटे को जन्म दिया था। घरवालों ने रिंकू तक यह खबर नहीं पहुंचने दी थी। वह औलाद के जन्म लेने की खुशी में थी।
उधर, उसके पति के बलिदानी होने के गम में पूरा परिवार, गांव व देश डूबा हुआ था। रिंकू को ये भनक तक नहीं थी कि उनका सुहाग हमेशा-हमेशा के लिए मां भारती की गोद में सो गया है।
रिंकू अपने पति का अंतिम दर्शन भी नहीं कर पाई थी। एक सप्ताह बाद जब उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिली तब जाकर उन्हें उनके पति की शहादत की जानकारी दी गई।
बलिदानी के पुत्र अमर ज्योति अभी पटना में स्नातक की पढ़ाई कर रहे हैं। ग्रामीण सनत शर्मा तथा चितरंजन शर्मा बताते हैं कि हम लोगों को इस बात पर गर्व है कि हमारे गांव के लाल ने कारगिल में भारत मां की आन-बान को झुकने नहीं दिया।
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