इंग्लैंड व मलेशिया जाएगी मुजफ्फरपुर की शाही लीची, दो साल के घाटे से उबरने की उम्मीद

अपने अनूठे स्वाद के लिए देश-विदेश में मशहूर शाही लीची इस साल इंग्लैंड व मलेशिया तक जायेगी। इसके लिए शहर से मात्र छह किमी की दूरी पर स्थित पुनास और मनिका गांव के बगीचा से फल भेजने की तैयारी की जा रही है।
पुनास के प्रिंस कुमार व मनिका के रजनीश कुमार एपिडा (एक्सपोर्ट व इंपोर्ट कंपनी) के माध्यम से लीची का निर्यात करेंगे। पहली खेप 15 मई तक भेजी जा सकती है।
प्रिंस कुमार ने बताया कि मार्केट ठीक-ठाक रहा, तो इस सीजन में 50 टन लीची इंग्लैंड व मलेशिया भेजी जायेगी। इसके अलावा दूसरे प्रदेशों व लोकल बाजार में लीची की मांग है। पिछले दो साल कोरोना की वजह किसानों को नुकसान उठाना पड़ा था, लेकिन इस बार अच्छे मुनाफे की उम्मीद है।
लीची को बारिश का इंतजार
लीची के लिए आने वाले 15 दिन काफी अहम हैं। लीची को बारिश की जरूरत है। बारिश से फल में लाली के साथ मिठास आयेगी।

बोरॉन की कमी से फट रही लीची
इस बार लीची पिछले कई साल से अच्छी है। लेकिन शहर के आसपास बैरिया, कांटी, कन्हौली के आसपास के बगीचा की लीची लाल होकर फट रही है।
इसकी एक वजह प्रदूषण भी है। दूसरी वजह लीची के पेड़ में बोरॉन व नमी की कमी बतायी जा रही है। बारिश हो जाने पर लीची नहीं फटेगी।
2018 में शाही लीची को मिला जीआइ टैग

बिहार का जर्दालु आम, कतरनी चावल, मगही पान के साथ 2018 में शाही लीची को जीआइ टैग मिला था। शाही लीची के लिए जीआइ पंजीकरण लीची ग्रोअर्स एसोसिएशन ऑफ बिहार को दिया गया है।
छलका किसान का दर्द : पानी के अभाव में गिर रहे लीची के फल
मैं शहर से सटे कांटी प्रखंड के सदातपुर गांव का हूं। इस गांव के लोगों की आमदनी लीची पर ही निर्भर है। गांव में कई बड़े व छोटे किसान हैं। गांव के पीछे सुधा डेयरी है। वहां के प्रदूषित पानी से लीची व आम के हजारों पेड़ सूख चुके हैं।
प्रकृति की मार अलग है। अत्यधिक गर्मी के कारण फल गिर रहे हैं। पानी का लेयर भी काफी नीचे चला गया है। सरकार को लीची अनुसंधान केंद्र या अन्य किसी माध्यम से लीची किसानों की मदद करनी चाहिए। – शंभुनाथ चौबे, लीची किसान