जाने बिहार को: बिहार के इन गांव के नामों में छुपा है राम-सीता बारात की कहानी, यहीं रुके थे रघुवर

भारतीय परंपरा में राम विवाह का एक अलग ही महत्व है और मुख्यतः राम कथा की हर ग्रन्थ में इस घटना का वर्णन अलग अलग तरह से किया गया है। राम विवाह की यादें आज भी बिहार के कई गावों में व्याप्त है।
बारातियों संग रूके थे राम सीता
बिहार और यूपी की सीमा पर बांसी नदी बहती है और इस नदी का वर्णन वाल्मीकि रामायण में किया गया है, ऐसा माना जाता है कि सिंघापट्टी गांव से होकर गुजरने वाली बांसी नदी के किनारे भगवान राम ने माता सीता और बारातियों संग रात बिताई थी। और इसी वजह से इस स्थान के आसपास के कई गांव का नाम बारात से जुड़ा हुआ है।
काल की कई यादों को अपने अंदर समेटे हुए इस नदी किनारे भगवान राम ने माता सीता और बारातियों संग रात बिताई थी, इस गांव में दासियां ठहरी थीं उनक नाम दहवा पड़ गया इसी तरह जहां घुड़सवार रुके थे, उनका नाम घोड़हवा हो गया। जिस गांव में सिंघा बजाने वाले ठहरे थे उसका नाम सिंघापट्टी पड़ गया।
शिवलिंग की स्थापना
बांसी धाम से एक किलोमीटर पश्चिम की ओर बांसी नदी के किनारे रामघाट स्थित है, बताया जाता है कि यही वो स्थान है जहाँ भगवान राम ने विश्राम किया था। देवरण्य क्षेत्र के रूप में प्रसिद्ध यह जगह जंगलों से घिरी हुई थी। नदी का किनारा होने के कारण काफी रमणीय भी था।
इस वजह से भगवान राम की बारात यहीं रुक गई, रात्रि विश्राम किया। सुबह बासी में भगवान श्रीराम ने स्नान भी किया था। साथ ही शिव की पूजा के लिए खुद शिवलिंग की स्थापना की थी। इसके बाद आगे का सफर तय किया था।
इसी जगह एक जानकी माता का मंदिर भी है, जो काफी पुरानी है। लोग बताते हैं कि यहां पर माता जानकी उस रात को निवास किया था। इसलिए इस जगह का नाम जानकीनगर पड़ गया।
चुकी इस स्थान पर खुद भगवन श्री राम ने शिवलिंग की स्थापना की थी इस पिंडी के बारे में जानने वाले स्थानीय लोगों ने यहां पूजन-अर्चन शुरू कर दी थी। अब यहां आने वाला हर श्रद्धालु बांसीघाट पर इस शिव मंदिर में पूजन-अर्चन किए बगैर नहीं लौटता। ऐसी मान्यता है कि यहां नदी में स्नान करने से पुण्य मिलता है। जीवन के समस्त अवरोधों से मुक्ति मिलती। ऐसी पौराणिक मान्यता है बांसी नदी में एक डुबकी लगाने से काशी में सौ बार जाकर स्नान-ध्यान करने का लाभ मिलता है