Pippa Review in Hindi: जब मैदान छोड़ जब भाग खड़ी हुई पाकिस्तानी फौज, जानिए कैसी है ईशान खट्टर की फिल्म Pippa?

Pippa Movie Review in Hindi: सरहद पर हुए भारत पाकिस्तान के बीच जंग में हमेसा से ही सिनेमा बनाने वालों की खूब दिलचस्पी रही है, पहले भी भारत पाकिस्तान गंज से जुड़ी कई फ़िल्में दर्शकों को खूब पसंद आई है।

न्यू मिलेनियल्स के दौर में उन सैन्य अफसरों पर फिल्में बनाने का एक चलन सा चल पड़ा है जिनके नायक युवा रहे है, हाल ही में ‘शेरशाह’ को खूब सराहा गया, इसी बीच एक और फिल्म सीधे ओटीटी पर रिलीज हुई है जिसका नाम है ‘पिप्पा’।

यहाँ से मिला नाम ‘पिप्पा’

इतिहास के पन्नों पर दर्ज 1965 और 1971 की लड़ाइयों के किस्से तो अपने जरूर सुने होंगे, दोनों लड़ाइयों में भारत ने पाकिस्तान के छक्के छुड़ा दिए थे। और 1971 की लड़ाई में भारत के तरफ से इस्तेमाल हुए टैंकों की खास भूमिका पर एक फिल्म रिलीज हुई है जिसका नाम पिप्पा है।

दरअसल 1965 और 1971 दोनों लड़ाइयों में भारत ने पीटी-76 टैंक का इस्तेमाल किया था। ये एक ऐसा टैंक है जो जमीन पर तो चल ही सकता था, पानी में भी तैर सकता था। एक लंबे रास्ते को नदी से पारकर जिस तरह से इन टैंकों ने पाकिस्तानी छावनी पर धावा बोला और फतेह हासिल की, उसकी कहानी है ये फिल्म।

रूसी टैंक को ये नाम 16 पंजाब रेजीमेंट के सैनिकों ने दिया था, दरअसल पंजाब से ताल्लुक रखने वाले फौजियों ने जब इनकी करामात को देखा तो वो प्यार से पिप्पा कहने लगे।

क्या है पिप्पा की कहानी

ईस्ट पाकिस्तान से कैसे बाग्लांदेश बना? कैसे बंटवारे के बाद बांग्लादेशियों पर जुल्म किए गए? कैसे उन्हें अपनी जान बचाने के लिए शरण लेने भारत आना पड़ा? भारत ने कैसे एक दूसरे देश की आजादी के लिए अपने सैनिकों को तैनात किया।

भारत ना सिर्फ अपना बल्कि अपने पड़ोसी देशों का भी कितना ख्याल रखता है, ये सब इस फिल्म में दिखाया गया है। लेकिन इसी के साथ कहानी है एक परिवार की, जहां सब देश भक्ति के जज्बे में डूबे हैं। देश के लिए कुछ भी करने को तैयार है।

कैसी है फिल्म

भारत और भारत के सैनिकों के जज्बे को दिखाती यह फिल्म अपनी कहानी बड़े ही आराम से कहती है, यहाँ आपको उनका दर्द भी दिखेगा जो इस जंग में अपनी जान की आहुति दे गए।

यहां कोई लव स्टोरी नहीं है, लेकिन थोड़ी सी अठखेलियां जरूर है। हर बार जब जंग पर सवाल उठाए जाते हैं, तो फिल्म के जरिए मेकर्स ने बताया है कि कई बार लड़ने का विकल्प नहीं होता है। हमें फ्रंट पर जाना जरूरी हो जाता है।

राम, बलराम और राधा की तिकड़ी

फिल्म में कैप्टन बलराम मेहता की कहानी है जो 26 साल की उम्र में जंग लड़ने चले गए थे, मजे की बात यह है कि परदे पर फिल्म को उतारते वक्त फिल्म के नायक ईशान इतने ही वर्ष के है।

फिल्म पंजाबी पृष्ठभूमि की है, फौज में ही मेजर बड़े भाई राम से उसकी कतई पटती नहीं है। बहन राधा के साथ वह सुट्टा मारता है। मां दोनों भाइयों की इस अनबन की तड़प बस आंखों से बयां करती है। ईशान ने एक युवा फौजी के रूप में अच्छा काम किया है।

फिल्म के सबसे अहम सीन में जब वह याहया खान का संदेश डिकोड करती हैं, तो उनके किरदार के होने का मतलब बन जाता है। सोनी राजदान का भी शानदार है। सैम मानेकशॉ के किरदार में कमल सदाना को देखना सुखद रहा। इंदिरा गांधी के किरदार में हालांकि फ्लोरा डेविड जैकब का चयन ठीक नहीं कहा जा सकता।