अक्षर न पहचान पाने वाले 30 दिनों में पढ़ने लगे कहानियां, जीविका दीदियों ने ऐसे सवारां बिहार के बच्चों का भविष्य, जाने पूरी रिपोर्ट

बच्चों के प्राथमिक विकास में उनके माता पिता, परिवार और शिक्षकों का अहम योगदान होता है। लेकिन बिहार में इस बार इस कार्य में कोई और भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। जी हाँ हम बात कर रहे है – बिहार की जीविका दीदियों के बारे में।
उन्होंने कुछ ऐसा कारनामा कर दिखाया है की अक्षर न पहचानने वाले बच्चे अब 30 दिन बाद कहानियां पढ़ने लगे है। आईये जानते है की बिहार की इन जीविका दीदियों ने आखिर ऐसा कारनामा कैसे कर दिखाया है?
जीविका की ओर से लगाया गया समर कैंप
दरअसल जीविका की ओर से पूरे बिहार में बीते 1 से 30 जून तक समर कैंप का आयोजन किया गया था। जिसमें राज्यभर के कक्षा 5 से 7वीं तक के 5 लाख 19 हजार 819 बच्चों को गांव के चबूतरों, घरों व सरकारी भवनों में खेल-खेल में पढ़ाया गया था।
जीविका दीदियों व गांव के युवक-युवतियों ने इन बच्चों को चिह्नित कर उन्हें अक्षर ज्ञान, कहानी पढ़ना, सामान्य गणित समेत कई चीजों की जानकारी दी।
30 दिनों में कहानियां पढ़ना सीख गये बच्चे
समर कैंप से जुड़े बच्चों की पढ़ाई शुरू कराने से पहले उनका मूल्यांकन किया गया था। इस दौरान ये पाया गया कि 5.19 लाख बच्चों में सिर्फ एक फीसदी बच्चे ही पहले से कहानी पढ़ना जानते थे। केवल 2 फीसदी बच्चे ही एक पाराग्राफ पढ़ पा रहे थे। सिर्फ 35 फीसदी बच्चे ही अक्षर पहचान पाये।
इसके साथ 38 फीसदी बच्चे ऐसे थे जो किसी शब्द को पढ़ पा रहे थे। वहीँ 24 फीसदी बच्चों को अक्षर का भी ज्ञान नहीं था। लगभग 7 साल में अक्षर भी नहीं पहचान पाने वाले बच्चे 30 दिनों में अब कहानियां पढ़ना सीख गये हैं। पूरे राज्यभर से 43726 वॉलेंटियरों ने बच्चों को समर कैंप में पढ़ाया था।
समर कैंप में कैंप में भाग लेने वाले बच्चों की रिपोर्ट
आपको बता दे की समर कैंप में भाग लेने वाले कुल 5 लाख 19 हजार बच्चों में से केवल 1.70 लाख बच्चों की मूल्यांकन रिपोर्ट आयी है। इस रिपोर्ट के अनुसार, समर कैंप में भाग लेने वाले 30 फीसदी बच्चे अब कहानियां पढ़ पा रहे हैं।
23 प्रतिशत बच्चे पूरा पाराग्राफ पढ़ ले रहे हैं। वहीं, 22 फीसदी बच्चे शब्द और 17 फीसदी बच्चे अक्षर पहचान ले रहे हैं। वहीँ 9 फीसदी बच्चे ऐसे थे जिनमें कोई प्रगति नहीं देखी गयी।