Bihar Land News: जमीन विवाद से है परेशान; जल्द होगा निपटारा, जानिए नीतीश सरकार का “मास्टर स्ट्रोक”

बिहार में जमीन के विवादों से परेशान लोगों के लिए अच्छी खबर निकल कर सामने आ रही है। इसके लिए नितीश सरकार ने बड़ा कदम उठाया है, जिसके तहत आपके जमीन के मामलों का जल्द निपटारा किया जाएगा।
राज्य सरकार ने सभी भूमि सुधार उप समाहर्ता (DCLR) को सप्ताह में चार दिन न्यायिक कार्य करने का निर्देश दिया है। इसके साथ ही इस निर्देश को लागू करने की जवाबदेही प्रमंडलीय आयुक्तों एवं जिलाधिकारियों को सौंपी गई है।
भूमि विवाद का समय सीमा के भीतर निबटारा
बिहार के राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के अपर मुख्य सचिव दीपक कुमार सिंह ने इन अधिकारियों को पत्र लिखकर कहा है कि – “वे भूमि विवाद से जुड़े मामलों के समय सीमा के भीतर निबटारे की गारंटी करें।”
बता दे की पिछले दिनों अपर मुख्य सचिव ने भूमि विवाद से जुड़े मामलों की समीक्षा की थी। जिससे यह पता चला कि लंबी सुनवाई के बावजूद अबतक सिर्फ 54.65 प्रतिशत मामलों का ही निबटारा हो पाया है।
तीन महीने से ज्यादा समय से मामले लंबित
समीक्षा के दौरान ये भी बताया गया कि बिहार भूमि विवाद निराकरण अधिनियम 2009 के मुताबिक डीसीएलआर के कोर्ट में भूमि विवाद की सुनवाई होती है। इस अधिनियम के तहत पुरे बिहार में कुल 11628 मामले दायर किए गए।
जिनमें से केवल 6355 मामलों का निबटारा ही हो पाया है। अब भी 5273 मामले न्यायालय में लंबित हैं। तीन महीने से ज्यादा समय से लंबित मामलों की कुल संख्या 3373 है।
सप्ताह में चार दिन अपने न्यायालय में बैठेंगे डीसीएलआर
इसको देखते हुए अपर मुख्य सचिव ने अपने पत्र में लिखा है कि – “यह स्थिति बताती है कि डीसीएलआर के स्तर पर भूमि विवाद अधिनियम के तहत संचालित न्यायालयों का कामकाज ठीक ढंग से नहीं चल रहा है। समय पर विवादों का निबटारा न होना निरीक्षण, पर्यवेक्षण एवं अनुश्रवण की कमी की ओर भी इशारा करता है।”
डीसीएलआर को स्पष्ट रूप से कहा गया है कि वे सप्ताह में चार दिन अपने न्यायालय में बैठेंगे। जिसके बाद प्राथमिकता के आधार पर उन मामलों का जल्दी निबटारा करें, जो 90 दिनों से अधिक समय से लंबित हैं।
जिलाधिकारियों को निबटारे की समीक्षा का दायित्व
इसके अलावा सभी जिलाधिकारियों से कहा गया है कि – “अधिनियम के अनुसार उन्हें मामलों के निबटारे की समीक्षा का दायित्व दिया गया है। वे इसका निर्वहन करें।”
इसी तरह प्रमंडलीय आयुक्तों की यह जिम्मेवारी है कि वे नियमित रूप से समीक्षा करें निर्धारित अवधि में न्याय निर्णय होता है या नहीं। वे आदेश के गुण-दोष की भी समीक्षा करें।
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