वोटिंग में हाथ पर लगाने लगाए जाने वाली सीक्रेट स्याही होती है कितनी पक्की, जानिए किस सीक्रेट जगह पर होता है इसका निर्माण

Voting Indelible Ink: लोकसभा चुनाव के अंतर्गत मतदान की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। पूरे देश में विभिन्न चरणों में मतदान संपन्न कराया जा रहा है। अगर आपके क्षेत्र में वोटिंग हो चुकी है और अब अपना बहुमूल्य वोट डाल चुके हैं। तो मतदान केंद्र में वोट डालने के दौरान एक बहुत ही जरूरी प्रक्रिया में भी हिस्सा लिया होगा।
इस प्रक्रिया के अंतर्गत वोटिंग की पहचान के लिए मतदाता की बाएं हाथ की इंडेक्स फिंगर में एक गहरे नीले रंग की स्याही लगाई जाती है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस स्याही का रंग कितना पक्का कैसे होता है ? जो महीने डेढ़ महीने तक ऐसे ही बना रहता है।
वोटिंग के बाद लगने वाली इस स्याही की कहानी बेहद ही रोचक है। इस खास स्याही को भारत में सिर्फ एक ही कंपनी के द्वारा बनाया जाता है। और इसमें एक ऐसा केमिकल फार्मूला उसे होता है जिसका कंपोजिशन कंपनी के अलावा और किसी को भी नहीं मालूम है।
कौन सा है केमिकल
आपको बता दे वोट देने के बाद लगाई जाने वाली स्याही में एक खास तरह का केमिकल प्रयोग किया जाता है। जिसे सिल्वर नाइट्रेट कहते हैं। इसकी खास बात यह है कि त्वचा और नाखून पर लगने के बाद हवा के संपर्क में आने के बाद यह निशान को और भी गहरा बना देता है।
जिस त्वचा के जिस भी हिस्से में इस केमिकल को लगा दिया जाता है वहां पर नए सेल्स नहीं बनते हैं। जब तक की निशान पूरी तरह वहां से हट ना जाए।
सिल्वर नाइट्रेट के प्रयोग
में मतदान के दौरान प्रयोग होने वाली इस स्याही का केमिकल सिल्वर नाइट्रेट का प्रयोग मेडिकल फील्ड में विशेष रूप से किया जाता है। घाव को संक्रमण से बचाने के लिए, रक्तस्राव को रोकने के लिए, गांठ और मस्सों को हटाने के लिए वह अन्य कई दवाइयों में इसका प्रयोग किया जाता है।
कौन सी कंपनी करती है निर्माण
आपको बता दे मतदान में प्रयोग होने वाले इस स्याही को एक खास कंपनी द्वारा बनाया जाता है। जिसके लिए एक सीक्रेट फार्मूला होता है। जो कंपनी किसी के साथ शेयर नहीं कर सकती है। चुनाव आयोग द्वारा नेशनल फिजिकल लेबोरेटरी ऑफ इंडिया और मैसूर पैंट्स एंड वार्निश लिमिटेड द्वारा इस स्याही का निर्माण दक्षिण भारत के कर्नाटक के मैसूर डिस्ट्रिक्ट में होता है।
मैसूर पैंट्स एंड वार्निश लिमिटेड भारत की सबसे पुरानी कंपनियों में से एक है। जिसका संबंध मैसूर के वाडियार राजवंश से है। मैसूर के शासक कृष्ण राजवाड़े यार ने 1937 में मैसूर लैक एंड पेंट्स कंपनी खोली थी। इसके बाद 1889 में इस कंपनी का नाम बदलकर मैसूर पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड कर दिया गया जो कर्नाटक सरकार के अधीन आती है।