भारत में पढ़े-लिखे लोग हैं बेरोजगार, अनपढ़ लोगों की तुलना में 9 गुना ज्यादा, जानिए वजह

भारत के पढ़े लिखे लोग ज्यादा बेरोजगार है। जी हाँ आपने सही पढ़ा। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने इसके सबंध में एक रिपोर्ट जारी किया है।
जिसके अनुसार भारत में उच्च शिक्षित युवाओं के बेरोजगार होने की दर उन लोगों की तुलना में अधिक है, जिन्हें स्कूली शिक्षा हासिल नहीं हुई है।
अनपढ़ लोगों की तुलना में पढ़े-लिखे लोग ज्यादा बेरोजगार
इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन द्वारा दिए गए रिपोर्ट में आंकड़ों के अनुसार, पढ़े-लिखे ग्रेजुएट्स के लिए बेरोजगारी दर 29.1 प्रतिशत थी।
यह दर ऐसे लोगों की बेरोजगारी दर से करीब नौ गुना अधिक है, जो पढ़ या लिख नहीं सकते हैं, जिनकी बेरोजगारी दर 3.4 प्रतिशत है।
वर्ष 2022 में 15 से 29 वर्ष की उम्र के युवा बेरोजगार भारतीयों का प्रतिशत घटकर 82.9 प्रतिशत हो गया था। जबकि साल 2000 में यह आंकड़ा 88.6 प्रतिशत का था।
इसके अलावा, आईएलओ के डाटा के अनुसार, शिक्षित युवाओं का प्रतिशत 2000 के 54.2 प्रतिशत की तुलना में बढ़कर 65.7 प्रतिशत हो गया है।
गाँव की तुलना में शहर में ज्यादा बेरोजगारी
इस रिपोर्ट की माने तो माध्यमिक या उच्च शिक्षा प्राप्त युवाओं के लिए बेरोजगारी दर छह गुना अधिक थी। यह 18.4 प्रतिशत थी।
गौरतलब है कि शिक्षित बेरोजगार युवाओं में महिलाओं की 76.7 फीसदी हिस्सेदारी थी। जबकि पुरुषों की 62.2 फीसदी थी। आईएलओ के यह आंकड़े गाँवों की तुलना में शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी की उच्च दर दिखाते हैं।
भारत में वैश्विक स्तर से अधिक युवा बेरोजगारी दर
“भारत में बेरोजगारी मुख्य रूप से युवाओं में एक समस्या थी। खासकर माध्यमिक स्तर की शिक्षा या उससे अधिक शिक्षा प्राप्त युवाओं में और यह समय के साथ बढ़ती गई। आंकड़े बताते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था गैर-कृषि सेक्टर्स में नए एजुकेटेड यूथ लेबर फोर्स के लिए पर्याप्त पारिश्रमिक वाली नौकरियां पैदा करने में असमर्थ रही है। यह उच्च और बढ़ती बेरोजगारी दर दुखद स्थिति को दर्शाती है। – आईएलओ की रिपोर्ट
स्किल और नौकरियों के बीच काफी असमानता
भारत के श्रम बाजार पर आई नई आईएलओ रिपोर्ट बताती है कि लेबर की स्किल और बाजार में पैदा हो रही नौकरियों के बीच काफी असमानता है।
यह रिपोर्ट आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन जैसे जाने-माने अर्थशास्त्रियों द्वारा सुझाई गई पूर्व चेतावनियों की ओर भी हमारा ध्यान लाती है।
ऐसे खतरनाक रुझान बताते हैं कि देश की खराब स्कूली शिक्षा समय के साथ उसकी आर्थिक संभावनाओं को भी बाधित करेगी।
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